hindisamay head


अ+ अ-

कविता

चित्रकार

नरेश अग्रवाल


मैं तेज प्रकाश की आभा से
लौटकर छाया में पड़े कंकड़ पर जाता हूँ
वह भी अंधकार में जीवित है
उसकी कठोरता साकार हुई है इस रचना में
कोमल पत्ते मकई के
जैसे इतने नाजुक कि वे गिर जाएँगे
फिर भी उन्हें कोई सँभाले हुए है
कहाँ से धूप आती है और कहाँ होती है छाया
उस चित्रकार को सब कुछ पता होगा
वह उस झोपड़ी से निकलता है
और प्रवेश कर जाता है बड़े ड्राइंग रूम में
देखो इस घास की चादर को
उसने कितनी सुंदर बनाई है
उस कीमती कालीन से भी कहीं अधिक मनमोहक।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में नरेश अग्रवाल की रचनाएँ